Find us on Google+ Ashaar: मंदिर में कब जाएँ ......

शनिवार, 5 मार्च 2011

मंदिर में कब जाएँ ......

मंदिर में कब जाएँ ......
इस सवाल का जवाब हर किसी के पास होगा...सबके बडे बुजुर्गों नें किसी न किसी वक़्त यह जरूर समझाया होगा कि मंदिर में कब जाना चाहिए ....लेकिन मेरा यह दृढ़ह विश्वास है कि जो कारण मैं बताने जा रहा हूँ इन कारणों क बारे में आपने कभी सोचा नहीं होगा..

कारण १: जब मंदिर क बहार पड़ी संदल कि ब्रांड मेहेंगी हो... यह परीचायक है कि जो मोहतरमा  अन्दर हैं वो काफी बडे घर कि हैं...पैसे रूपए से परीपूर्ण हैं लेकिन किसी कि तलाश में हैं...उनके जीवन में किसी कि कमी है ....मोहतरमा के आयू का पता आपको उनकी संदल कि हील कि ऊँचाई से चल जायेगा... अतः एक बार जब आपको भरोसा हो जाए जी आप ही उनके लिए बने हैं..आप मंदिर में जा सकते हैं..... किस्मत कि आजमाइश भी हो जाएगी और भगवान् के दर्शन भी हो जायेंगे...

कारण २ : जब आपको पता हो की मंदिर में भोजन का आयोजन  है... इसके दो फायेदे हैं ...सबसे पहले तो फ़ोकट का खाना...जो हमेशा ही स्वादिष्ट होता है ... और दूसरा फायेदा है कि यह आपको मौक़ा प्रदान करेगा सामाजिक हनी का...नयनों से नयन मिलने का... और ढून्ध्नेका अपने स्वप्नों वाली उस ख़ास पहेली को ... ध्यान यह रहे कि आप मंदिर में होंगे..अतःह कोई भी बुरा ख्याल न रखें दिलओदिमाग में..... मंदिर में भोज खिलाना और उसमें सहायता प्रदान करना एक इसी समाज सेवा है जिसमे आप समाज से ज्यादा अपनी भलाई कर सकते हैं.... 

कारण ३ : जब आपके जूते पुराने हो चलें हों... आपने शायद यह उक्ति सुनी होगी कि ..." भगवान् से भी स्थान बड़ा है जूते का...पूजा करें मंदिर में और ध्यान लगायें जूते का..."...अब बस इस महंगी में इससए बड़ा कारण क्या हो सकता है मंदिर जाने का .... अपनी उतारिये नाप लीजिये ...पेहेनियी और चलिए....


तो यह थे तीन ज्वालान्त्त कारण मंदिर जाने के.... मैं इस श्रृंखला में और भी कारण प्रस्तुत करने कि पूरी कोशिश करूंगा .... अगर आपके पास भी कोई कारण है जिनसे हम नयी पीढी को मंदिर ले जा सकें तो मुझे जरूर बताएं.... प्यार करें..प्यार बांटें और प्यार फैलाएं......

फिर मिलते हैं...

विकाश







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