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शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

बड़ा आदमी बड़ा अजीब

बड़ा  आदमी  बड़ा  अजीब



भारतवर्ष मूल्यतः दो प्रकार के मानव समुदाय  से  गठित  है : आम आदमी और बड़ा आदमी .

सांझ सवेरे राह चलते जो सहज दृष्टिगोचर हैं  वो है आम आदमी. आज चलिए एक आम आदमी के दृष्टिकोण से व्याख्या की जाए बड़े  आदमी  की  ओर  देखा  जाए  कि आखिर मानव  रूपि यह प्रजाति  एक  होते हुए भी इतनी भिन्न क्यूँ  है ?


ग्रीष्म काल  में  जहाँ  पसीने  से  लथपथ  आम  आदमी  घर  पहुँच  कर  खिड़की  दरवाजे  खोल  हवा  का  आनंद  लेता  पाया  जाता  है  वहीँ  बड़ा  आदमी  खिड़की  दरवाजे  बंद  कर  बंद  कमरे  में  रहना  पसंद  करता  है . क्या  उसे  गर्मी  नहीं  लगती ? या  कि  हवा  का  झोंका  उसे  पसंद  नहीं ? क्या  अजीब  बात  है  !!


पायी  पायी  का  हिसाब  रखते  जहाँ आपका  हमारा  जीवन  व्यतीत  हो  जाता  है  वहीँ  बड़ा  आदमी  लौटाए  हुए  चिल्ल्ड  छोड़  कर  होटल  से  निकल  आता   है . क्या  उसे  हिसाब  करना  नहीं  आता  या  कि  उसकी  बगली  में  उन  चिल्लादों  क  लिए  जगह  नहीं ? अरे  अगर  जगह  नहीं  है  तो  बड़ी  बगली  वाली  शर्ट  पहननी  चाहिए  थी  न .  यूं  कोई पैसे  दूओस्रों  क  लिए  चोदता  है  भला ? आप  ही  बताइए  क्या  अजीब  बात  है  यह .

नेताओं  का  भाषण  हो  या  चोरी  कि  खबर . आम  आदमी  कितनी  शिद्दत  से  उसे  सुनता  है  और  उसपर  गौर  करता  है . नेतागण  क  वादों  क  झूठे  हनी  का  आभास  उसे   रहता  है  लेकिन  फिर  भी  वो  उसपर  विचार  करता  है  और  उम्मीद   बांधता  है  कि  शायद  इस  बार  उसके  साथ  धोखा  नहीं  होगा . लेकिन  बड़ा  आदमी  , इनकी  बात  ही  अलग  है . यह  सुबह  का  अखबार  उठाते  हैं  विनम्रतापूर्वक  छापी  खबर  को  पढ़  कर , देश  और  उसकी  अवस्था  पर  एक  भीनी  सी  मुस्कान  डालते  हैं  और  अपनी  दिनचर्या  में  लग  जाते  हैं . है  न  अजीब  बात  यह .

आम  आदमी  का  जब  बेटा  जवान  होता  है  तो  उसके  मुह  से  निकलता  है  कि  अब  मेरा  बेटा  मेरा  यह  काम  करवा  देगा , मेरी  ज़िन्दगी  संवार  देगा . बिटिया  कि  शादी  हो  जाएगी  और  घर  कि  छत्त  चूनी  बंद  हो  जाएगी . उसको  एक  उम्मीद  होती  है , एक  ललक  होती  है . लेकिन  बड़े  आदमी  का  जब  बेटा  जवान  होता  है  तो  उसका  कथन  होता  है  कि  " मैंने  इतना  कुछ  कर  रखा  है  कि  इसको  कुछ  करने  कि  जरूरत  ही  नहीं ". अरे क्यूँ  भाई आपको अपनी सुपुत्र के  नालायाकता पर इतना भरोसा है क्या ? ऐसी  अजीब  सोच  क्यूँ ?

"बाप  का  पैसा  है  न " और "पिताजी  से  कैसे  मांगूं"  का  यह  द्वंद्व हमारा  देश  रोज़  झेलता  है .

आपके समक्ष भी अगर इस द्वंद्व का कोई रूप आया हो तो जरूर बताएं !!

आप सभी का,

विकाश